
Dev Uthani Ekadashi 25 November 2020 नमस्कार दोस्तों कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है आज हम इस में देव उठनी एकादशी व्रत कथा सुनाई की कि एक समय की बात है !
एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे और नौकर चक्रों से लेकर पश्चिम तक को एकादशी के दिन नहीं दिया जाता था एक दिन कि से दूसरे राज्य से एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला महाराज कृपा करके मुझे नौकरी पर रखने तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी ठीक है !
Dev Uthani Ekadashi 25 November 2020
रख लूंगा लेकिन रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा लेकिन एकादशी को अन्न का एक दाना नहीं मिलेगा उस व्यक्ति ने हा कर ली पर एकादशी उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के पास जाकर बोला महाराज इससे मेरा पेट नहीं भरेगा मैं भूखा है !
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मर जाऊंगा मुझे अन्न दे दो राजा ने उसे शर्ट की बात याद दिलाई पर वह अन्न होने को राजी नहीं हुआ तब राजा ने उसे आटा दाल चावल आदि दे दिए और वह रोज की तरह नदी पर पहुंचा वहां स्नान करके भोजन पकाने लगा जब भोजन बन गया तो भगवान को बुलाया और भगवान प्रशांत भूषण है !
उसके बुलाने पर पीतांबर धारण किए हुए भगवान चतुर्भुज रूप में उसके सामने आ गए और प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगी भोजन करने के बाद भगवान अंतर्धान हो गए और वह अपने काम पर चला गया 15 दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा !
महाराज मुझे दुगना सामान दीजिए उस दिन तुम्हें भूखा ही रह गया जब राजा ने इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि मेरे साथ भगवान की खाते हैं इसलिए हम दोनों के लिए यह सामान पूरा नहीं पड़ता यह सुनकर राजा को बहुत आश्चर्य हुआ वह बोला मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं !
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मैं तो इतना व्रत रखता हूं पूजा करता हूं और भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए राजा की बात सुनकर बोला महाराज यदि विश्वास ना हो तो मेरे साथ चल कर देख लो राजा एक पेड़ के पीछे छुप कर बैठ गया उस व्यक्ति ने भोजन बनाया और भगवान को शाम तक पुकारता रहा करता रहा परंतु भगवान नहीं आए अंत में उसने कहा हे !
भगवान नहीं नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर अपने प्राण त्याग कर दूंगा लेकिन फिर भी भगवान नहीं आए जब प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा और प्राण त्यागने का उसका इरादा जानकर भगवान शीघ्र ही प्रकट हो गए !
और उन्होंने उसे रोक लिया और उसके साथ बैठ बैठकर भोजन करने लगे और उसे अपने विमान में बैठा कर अपने साथ अपने धाम ले गए यह देखकर राजा ने सोचा कि व्रत उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता !
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जब तक हमारा मन शुद्ध ना हो इससे राजा को ज्ञान मिला वह भी सच्चे मन से व्रत और उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ तो दोस्तों कैसी लगी आपको आज की यह कहानी ऐसी और कहानी के लिए website धन्यवाद !
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